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मन के कोरे कागज़ पर

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मन के कोरे कागज पर प्रियतम
तेरी तसवीर बनाती हूँ
अलग अलग रंग देख के
मैं सोच में पड़ जाती हूँ

कभी शिव समान तुम बैरागी
कभी मदनदेव सम अनुरागी
कभी कृष्ण सा नटखट पाती हूँ
कभी राम सा धीरज पाती हूँ

मन के कागज पर प्रियतम....

कभी लाल मिर्च से तीखे हो
कभी मन खट्टा कर देते हो
कभी नीम सा कड़वा पाती हूँ
कभी शहद से मीठा पाती हूँ

मन के कागज पर प्रियतम....

कभी तेज रवि से तुम होते
कभी चाँद से भी शीतल होते
तुम्हें प्राणवायु सा पाती हूँ
बिन जिसके जी नहीं पाती हूँ

मन के कागज पर प्रियतम....
                                 ✍️प्रीति ताम्रकार
                                       जबलपुर


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3 Comments

Swati chourasia

23-Sep-2021 09:14 PM

Very nice 👌

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Zakirhusain Abbas Chougule

23-Sep-2021 07:53 PM

Nice

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Gunjan Kamal

23-Sep-2021 05:59 PM

वाह मैम बेहतरीन अभिव्यक्ति

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